Tuesday 27 December 2011

---------"और क्या देखना"-------------
अब जमानें में और क्या देखना है बाकि
दिखा घर में ही सारा संसार बाकि;
चिता सजा रहें सब अपनी-अपनी
बस आग का खुद लगना है बाकि;
आशियां कैसे कह दें इन दीवारों को
अभी दिल का बसेरा होना है बाकि;
रहने के लायक अब शहर रहा नहीं
बस जंगलों से गुजरना रहा है बाकि;
अब तक किया और भी कर लें
धोने को पाप तीरथ हैं बाकि;
दोस्त,बहलना ना उनकी मीठी बातों से
अभी तो छुरी का चलना है बाकि;
होश में रहता हूं तब तलक मैं
मय जब तलक जिगर में रहती है बाकि;
(सम्प्रति आपके इस दोस्त की,मय से मेरा कोइ वास्ता नही)

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